प्रलय नहीं यदि आज हुआ तो और प्रलय कब होगा?
शिव-द्रोही रिपुओं का, भगवन्! यहाँ विलय कब होगा?
बह निकलेगा झञ्झानिल कब, ज्वालामुख फूटेगा?
कब अघ के इस आडम्बर का नभ-वितान टूटेगा?
कब साम्वर्त्तक-मेघ जुड़ेंगे, बरसेगी कब धारा?
कब पलटेगी भूमि, सिन्धु भी दहल उठेगा सारा?
कब उछलेंगे अचल धराधर, जड़ भी चेतन होगा?
कब नीरव अम्बर में गुञ्जित तेरा शिञ्जन होगा?
कब तेरे दारुण पिनाक का घोष, दिगम्बर! होगा?
और पुनः डमरू का डिम-डिम, कब भैरव स्वर होगा?
आततायियों के वैभव का ध्वस्त निलय कब होगा?
प्रलय नहीं यदि आज हुआ तो और प्रलय कब होगा?
ग्रह-नक्षत्र गिरें उल्का बन, अशनि-पात कब होगा?
अट्टहास कब होगा यम का, कुलिश-घात कब होगा?
कल्प-नृत्य का मञ्च सजेगा, ताल चिरन्तन होगा?
कब ताण्डव से कम्पित संसृति का हर प्राङ्गण होगा?
कब उगलेंगी अनल दिशाएँ, खल का क्षय कब होगा?
प्रलय नहीं यदि आज हुआ तो और प्रलय कब होगा?
आज गिराकर दुर्ग मोह का, भस्म पाप कर देना
नीलकण्ठ! हम पर मँडराता कालकूट हर लेना,
हे त्रिशूलधर! त्रयः शूल का शोधन करने आओ
ज्ञान-वापि को अमृत-जल से आज पुनः भर देना।
नव-मन्दिर का श्रीगणेश सुन, मन निर्भय कब होगा?
प्रलय नहीं यदि आज हुआ तो और प्रलय कब होगा?
ध्यातव्य – वापि=वापी
अद्भुत! माता सरस्वती देवी जी, तुम्हारी लेखनी में इसी प्रकार सदैव वास करें। चिरञ्जीव, सुखी भव वत्स 🙌🕉️😇
अद्भुत लेखनी है आपकी! संस्कृत, हिंदी और अन्य भाषाओं का आपका समग्र ज्ञान बहुत ही प्रेरणादायक है। मुझे विश्वास है आप निरंतर उत्तरोत्तर प्रगति करते रहेंगे – जिस क्षेत्र में भी आप कार्य करेंगे