Pearls of verses on the Devi



देवीसूक्तिमुक्तावली।

नमश्चण्डिकायै॥

शरदागमे धरणीधरेन्द्रसुतापदाम्बुजसेवनान्
निजलक्ष्यसाधनकर्मठः परिहाय भोगमनोरथम्।
परमार्थचिन्तनतत्परो गिरिजाप्रदर्शितवीथिकां
तपसा व्रजेद्विविधावरोधशिलां विभेद्य निरन्तरम्॥१

विबुधेशदिनेशनिशेशनुतं परमेशगणेशरमेशनुतं
धरणीधरराजसुते सततं तव नौमि कृपामयि पादयुगम्।
अपगाजलधौतविशुद्धपदं मलयाचलचन्दनलेपयुतं
वनकण्टकविद्धपदं मृदुलं तव नौमि तपस्विनि पादयुगम्॥२

नवपद्ममृणालसुकोमलपाणिपुटे खरचण्डबलं त्रिशिखं
शवभूमिविभूतिविलेपितभीमतनौ मणिमालकपालयुगम्।
शिवचारणभूतपिशाचविहारविनोदितमञ्जुमुखं सुभगं
तव देवि विरूपसुरूपमयीच्छविरेव शिवे हरतादशिवम्॥३

अयि दशकण्ठभुजाधृतभूधरतुङ्गविचित्रविलासरते
शिशुशशिमौलिविनोदविधायिनि पूर्णकलाधरचन्द्रमुखे।
बलधनमानविमत्तदशाननदर्पविभेदनसूत्रधरे
विजितसुरारिनुते जय हे गिरिराजसुते भव मे शरणम्॥४

रक्तबीजलतारक्तकरप्रान्ताततासये।
रक्तलोलुपलोलायै कालिकायै नमो नमः॥५

विभेद्य दुर्गमं दुर्गं दुरितस्यासिना द्रुतम्।
मानसे मे वसेन्नित्यं दुर्गा दुर्गतिहारिणी॥६

विद्यादानप्रिया वाणी द्रव्यदानप्रिया रमा।
प्राणदानप्रिया चण्डी तिस्रो दानपरायणाः॥७

चूर्णीकृतसुरारातिरत्नमण्डितमौलये।
सङ्ग्रामचण्डिकापादनूपुरायास्तु मङ्गलम्॥८

आततायिप्रचक्रस्य सस्वनं मूर्ध्नि नृत्यते।
रणचण्डीपदाम्भोजनूपुरायास्तु मङ्गलम्॥९

श्रवणकलुषजातं योगनिद्रोत्थितस्य
त्रिदिवदनुजयुग्मं हन्तुकामस्य तूर्णम्।
जननि! रणजिगीषोस् त्वत्कृपाभ्यर्थनार्थं
चतुरधिकभुजाशा शार्ङ्गिणो नः पुनातु॥१०

“O Mother! Awake from his Yoga Nidra and desiring to defeat in a hand-to-hand combat, the two Asuras born out of his ears, Sri Vishnu sought to pray to you for his expeditious victory. May his desire for possessing more than four arms in order to pray to you protect us.”

भुवनहृदयशल्ये वारुणीपानमत्ते
महिषशिरसि सङ्ख्ये दारुणे न्यस्तमेतत्।
सकरुणसुररक्षादीक्षितायाः शिवाया
अरुणचरणयुग्मं पातु वश्चण्डिकायाः॥११

प्रेरणा – डॉ॰ शङ्करराजाराम-महोदयः।

“समस्त संसार के हृदय में शल्य जैसे, मदिरा के पान से मत्त हुए व दारुण महिषासुर के सिर पर रखे गए युद्ध में सभी दुःखी देवताओं की रक्षा के लिए दीक्षित शिवा चण्डी के अरुण-चरण-युगल आप सबकी रक्षा करें।”

अयि हराननहर्षविधायिनि
दुरितवृन्ददुराग्रहदारिणि।
स्मितमुखत्रिशिखाग्रनियोजनैर्
हर सतामसतां क्रमशः क्लमम्॥१२

करुणया तव हे जगदम्बिके
फलति काव्यकदम्बलता मम।
कुसुमपल्लवभूषितवल्लरी
रसिकचित्तमधुव्रतमोहिनी॥१३

अभिलषितफलविसरवितरण-
मुदितहरिहरसकलसुरगण-।
भुजगनरमुनिविविधनिगदित-
स्तुतिविनुतपदजलजमधुरस-॥१४

निरतमधुकरदुरितवशगत-
शरणविरहितकरुणरसयुत-।
निजतनयवरमव निखिलभव-
जननि रिपुदलजयिनि जय जय॥१५

पराभूतसुरारातिरक्तकर्दमपादिका।
परानन्दलता पायात् सदाऽपर्णा महाफला॥१६

पराजित हुए देव-शत्रु दानवों के रक्त-रूपी कीचड़ में पैर रखने वाली, अपर्णा (पत्रहीन), और महान् फल देने वाली परमानन्द-मयी लता (हमारी) रक्षा करे।

सप्रजां गां समालोक्य पीडयन्तं हि सैरिभम्।
कुप्यन् पातु मृगाधीशश् चण्डिकापीठवाहकः॥१७

“किसी महिष (भैंसे) के द्वारा अपनी सन्तानों के साथ पीड़ित की जा रही गाय को देखकर कुपित होने वाला चण्डी का आसन-वाहक सिंह (हमारी) रक्षा करे।”

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