गौरी-गङ्गा-वार्तालापः
का त्वं भर्तृशिरोवहे?, वद शुभे, का त्वं धृते वर्ष्मणा?
का वारीव चले त्वमेव? कठिने का त्वं महीध्रात्मजे?।
का शैत्यादपि शीतले त्वमसि? का ज्वालामुखि त्वं प्रिये?,
इत्थं शैलसुताजनार्दनपदीवार्ता हरं नन्दयेत्॥१
देवी पार्वती – तुम मेरे पति के शीश पर धारण की गई कौन हो?
देवी गङ्गा – हे शुभे, तुम (उनके) शरीर से धारण की गई कौन हो?
पार्वती – तुम जल जैसी तरल कौन हो?
गङ्गा – हे पर्वत की पुत्री, तुम इतनी कठोर कौन हो?
पार्वती – हे शीत से भी ठण्डी, तुम कौन हो?
गङ्गा – हे प्रिया, हे ज्वालामुखी, तुम कौन हो?
इस प्रकार गौरी और गङ्गा का यह संवाद भगवान् शिव को प्रसन्न करे।
चित्रं देवि कुलं तवास्ति, जननं चित्रं यथा ते श्रुतं
चित्रं वै तव वाहनं, तव रथाच्चित्रं कथं जायताम्।
चित्रं ते क्षरितं वपुश्च, पतितं गात्रं च ते सर्वतः,
इत्थं शैलसुतात्रिविष्टपनदीवार्ता हरप्रीतये॥२
पार्वती – हे देवि, आपका कुल तो विचित्र है!
गङ्गा – हाँ, वैसे ही जैसे आपका विचित्र वंश हमने सुना है।
पार्वती – आपका तो वाहन (मकर) निश्चय ही विचित्र है!
गङ्गा – किन्तु वह आपके रथ (सिंह) से अधिक विचित्र कैसे हो सकता है?
पार्वती – आपका पिघला हुआ (जल-रूपी) शरीर तो बहुत विचित्र है!
गङ्गा – और भूमि पर सर्वत्र गिरा हुआ (शक्ति-पीठों में) आपका शरीर भी!
इस प्रकार देवी पार्वती और गङ्गा का संवाद भगवान् शिव की प्रसन्नता के लिए हो।
हारं हारमहो समस्तकलुषं त्वं पूततोया कुतो
दाहं दाहमहो सुरारिनिकरं त्वं शीतलाख्या यतः।
मा वादीरधिकं शिवे कलकलस्वानस्तु मे पादयो-
रित्थं शैलसुतामुनीन्द्रतनयावार्ता हरं हर्षयेत्॥३
पार्वती – सभी के कलुषों को हरते-हरते तुम पवित्र जल वाली कैसे हुई?
गङ्गा – वैसे ही जैसे असुरों की सेना को जलाते-जलाते तुम शीतला कहलाई।
पार्वती – अरे अधिक न बोल!
गङ्गा – हे शिवा, यह कल-कल ध्वनि तो मेरे पैरों की है।
इस प्रकार गौरी और गङ्गा का यह संवाद भगवान् शिव को हर्षित करे।
कस्यास्त्वं तनयो, गणेश वद मे जातोऽसि कस्यास्तनोः
कस्याः कुक्षिगृहेऽसि पालित इति व्याचक्ष्व लम्बोदर।
सूनुस्ते शिखिवाहनः कथमिति ज्ञातं शिवे तत्त्वतो
मध्यस्थः क इहास्तु वादसमये द्वैमातुरस्याम्बयोः॥४
गङ्गा – हे गणेश, तुम किसके पुत्र हो? मुझे बताओ।
पार्वती – तुम किसके शरीर से उत्पन्न हुए हो? कहो।
गङ्गा -हे लम्बोदर, तुम किसके गर्भ में पले हो? यह तो बताओ। हे उमा, कार्त्तिकेय तुम्हारे पुत्र कैसे बने, यह भी हमें यथार्थ ज्ञात है।
अब द्वैमातुर गणेश की माताओं के विवाद के समय मध्यस्थ कौन बने?
भद्रं ते कमलापतेः पदनखाज्जाते सुते चञ्चले
यस्याहो भवती सखी च भगिनी धातृस्वसे ते नमः।
आयाते कलहान्तके मुररिपौ तत्स्वागतायोत्थिते
देव्यौ ते प्रणमामि देवतटिनीशैलात्मजे सन्ततम्॥५
पार्वती – हे कमलापति विष्णु के पद-नखों से जन्मी चञ्चल पुत्री, तुम्हारा कल्याण हो।
गङ्गा – अहो, जिन पिताजी की आप सखी और भगिनी हैं; बुआ जी, नमस्ते।
कलह का अन्त करने वाले मुरारि श्रीहरि के आते ही उनके स्वागत के लिए उठ खड़ी होने वाली देवियों – गङ्गा और गौरी – को मैं सतत प्रणाम करता हूँ।