On Inflation



अमेरिकायां महती मुद्रास्फीतिः-

(प्रथमो भागः)

आयस्यार्धं ददति पुरुषाः सर्वकारस्य कोशे
तस्मादर्धं भवति वपुषो भोग्यमेवावशिष्टम्।
मुद्रास्फीतिर् हरति तदपि स्वार्जितं तत्प्रसह्य
प्राणानां नः किमपरमिह व्यय्यते धारणाय॥१ 

“लोग अपनी आय का आधा भाग सरकार के कोश में दे देते हैं। अतः शरीर के द्वारा भोगने के लिए केवल आधा भाग ही शेष रहता। उस कमाए हुए आधे भाग को भी महँगाई बल-पूर्वक हर ले जाती है। अब हमारे प्राणों को धारण करने के लिए और किस धन का व्यय किया जाए?”

वृद्धो मन्दोऽयमिह पुरुषः सुप्रसिद्धो गतायुर्
दिष्ट्या लब्ध्वा नृपतिपदवीमक्षमः क्षीणबुद्धिः।
मन्त्रिस्थानेऽकुशलकमलां योजयित्वाऽनभिज्ञां
वैषम्यं नो वितरति सदा मूल्यवृद्धिस्वरूपम्॥२

“यह बूढ़ा, मन्द, अकुशल, और क्षीण-बुद्धि वाला प्रसिद्ध पुरुष भाग्यवश राजा की पदवी को प्राप्त कर और तिस पर भी किसी अयोग्य महिला को अपने मन्त्री के स्थान पर नियुक्त कर हमारे लिए मूल्य-वृद्धि रूपी विषमता बाँटता है।”

कोरोणायाः किमपि न भयं नास्ति मे युद्धभीतिर्
भूमेस्तापः स्पृशति न च मां भाविकालस्य चिन्ता।
एका शङ्का व्यथयति मनः सर्वकारप्रमादाद्
दुर्दान्तेयं जयति भुवनं डाकिनी मूल्यवृद्धिः॥३ 

“न मुझे कोरोना का भय है और न (रूस-यूक्रेन) युद्ध का। न वैश्विक तापमान वृद्धि मुझे छूती है और न मुझे आने वाले भविष्य की चिन्ता है। किन्तु सरकार की अयोग्यता के कारण एक शंका मेरे मन को व्यथित करती है कि यह दुर्दान्त महँगाई नामक डायन सारे जगत् को जीत रही है।”

रिक्तः कोषो भुवनविदितो मन्त्रिणश्चाटुकाराः
सर्वे सिद्धा मधुरवचने जैनेटाद्या नियुक्ताः।
लब्ध्वा तन्त्रं सुविनियमितं पूर्वगस्य प्रसादाद्
वित्तध्वंसे प्रसभमपि ते स्वप्रजानां प्रवृत्ताः॥४

“कोष रिक्त है – यह संसार विदित है। नियुक्त किए गए जैनेट आदि मन्त्रिगण चाटुकार हैं और मधुर बात करने में सिद्ध हैं। पूर्व के प्रशासन से सुनियमित अर्थ-तन्त्र को पाकर भी वे सब अपनी ही प्रजा का धन-नाश करने में लगे हुए हैं।”

ट्रम्पो राजा पुनरपि भवेद् यस्य राज्ये विशेषो
युद्धाभावोऽभवदिह सदा रूसयूक्रेनमध्ये।
नीत्याऽर्थिक्या सकलजनताः पालिता येन सम्यक्
त्रस्ता दण्डात् परमविकटा डाकिनी मूल्यवृद्धिः॥५

“पुराना राजा एक बार फिर लौट आए, जिसके राज्य में रूस और यूक्रेन के बीच विशेष युद्धाभाव था, जिसने आर्थिक-नीति के द्वारा समस्त जनता का सम्यक् पालन किया और जिसके दण्ड से परम विकराल मूल्य-वृद्धि नामक डायन त्रस्त रहती थी।”

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