Sūrya Suprabhātam



-श्रीसूर्यसुप्रभातम्-

-प्रथमं प्रभातम्-

अक्षक्रियामुडुपतेः सुचिरं निरीक्ष्य
रात्रिर्गता विमनसा शयनाय गेहम्।
एकैकतारकविभा गगने विलीना
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥१

“नक्षत्रराज चन्द्रमा की बहुत समय तक चलने वाली द्यूत क्रीड़ा को देखकर रात्रि खिन्न होकर सोने के लिए अपने घर चली गई। फिर एक-एक कर तारों की विभा भी आकाश में विलीन हो गई। अतः हे सवितृ-भगवान् सूर्यदेव, अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

सूतेन ते दिनमणे चतुरारुणेन
सप्तांशुसप्तिसहितः कनकोपमाङ्गः।
त्वत्स्यन्दनः सुरपथे गमनाय सज्जस्-
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥२

“हे दिवाकर! आपके चतुर सारथि अरुण द्वारा आपका सात अश्वों से जुता हुआ और स्वर्णाभ शरीर वाला रथ देवताओं के मार्ग से चलने के लिए प्रस्तुत है। अतः हे सवितः सूर्यदेव, अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

सिन्दूररेणुभिरलङ्कृतदीप्तभालास्
त्वत्स्वागताय विनताश्च दिशश्चतस्रः।
क्ष्मान्तप्रदेशरजताद्रिनिकेतनेषु
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥३

“पृथ्वी के क्षितिज पर श्वेत पर्वतों के निकेतनों में अपने उद्दीप्त ललाट को सिन्दूर रेणु (लाल रंग) से अलंकृत कर चारों दिशाएँ आपके स्वागत के लिए प्रणत हो रही हैं। अतः हे सवितः सूर्यदेव, अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

याम्भोरुहेषु कमला शयिता रजन्या-
मुत्थाय सा विकसति त्वदुपासनार्थम्।
आकाङ्क्षिणी तव नवस्मितदर्शनाय
तस्मादुदेहि भगवन् तव सुप्रभातम्॥४

“रात्रि के समय जो कमला (लक्ष्मी) कमल के पुष्पों के भीतर सो गई थी, अब वह आपकी उपासना करने हेतु पुनः खिल उठी है, और आपकी नई मुस्कान को देखने की आकांक्षिणी है। अतः हे भगवन्, अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

गङ्गातटेषु खगकूजितवृक्षराज्यां
रागानुरञ्जितनवस्फुटपल्लवा ये।
स्नातुं मयूखसलिले हि समुत्सुकास्ते
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥५

“गंगा के तटों पर जो पक्षियों द्वारा कूजित वृक्षों की श्रेणी पर लाल रंग से रंजित नव-स्फुट पत्र हैं, वे भी आपकी किरणों की धारा में स्नान करने के लिए उत्सुक हो रहे हैं। अतः हे सूर्यदेव, अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

ऐरावतस्थसुरराज इहागतस्ते
मार्गात् समस्तमपसारयितुं रथस्य।
सम्मर्दमम्बुधरधूमघनान्धपङ्कं
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥६

“हे देव, देखिए ऐरावत पर चढ़कर स्वयं देवराज इन्द्र यहाँ पधारें हैं और आपके रथ के मार्ग में जो धुएँ से उत्पन्न मेघों का घना पंक है, उसे हटा रहे हैं। अतः हे सवितः, अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

लोकाधिपाल-नरपाल-सुराधिपाला
दिक्पाल-यक्षगणपाल-सुरारिपालाः।
वेलां तवोदयपरामभिचिन्तयन्ति
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥७

“हे सूर्यदेव, सभी लोकपाल, राजागण, देव राज इन्द्र, यक्षगणों के स्वामी गण, और असुरों के प्रमुख आपकी उदय वेला का ही चिन्तन कर रहे हैं। अतः हे सवितः, आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

सन्ध्यां विधातुमुदधीशजलेन चार्घ्यं
स्वब्रह्मतेजसि परे विनिवेद्य तूर्णम्।
पूजां गृहीतुमखिलस्य जगत्त्रयस्य
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥८

“सन्ध्या वन्दन हेतु आप शीघ्र ही अपने परब्रह्म रूपी तेज को समुद्र के जल से अर्घ्य समर्पित कर, तत्पश्चात् तीनों लोकों की पूजा ग्रहण करने के लिए उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

ऋङ्मण्डलं तव यजुर्वपुरेव दिव्यं
सामानि ते च किरणाः प्रणवोऽन्तरात्मा।
विप्राश्चतुर्विधगिरा त्वभिमन्त्रयन्ते
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥९

 “ऋग्वेद आपका मण्डल है, यजुर्वेद दिव्य काया है, साम मन्त्र किरण-समूह है, और प्रणव ही अन्तरात्मा है। विप्र इन चारों से आमन्त्रण दे रहे हैं। अतः हे सूर्यदेव, आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

रागादिरागशुभभैरवकीर्तनेन
सर्वत्र शान्तरसराज्यमुपैति वृद्धिम्।
वीणामृदङ्गवरदुन्दुभिवेणुनादैस्
तस्मादुदेहि सवितस्तव सुप्रभातम्॥१०

“हे सवितः, सभी रागों में आदिराग शुभ भैरव के कीर्तन से सर्वत्र शान्त रस का साम्राज्य फैल रहा है। वीणा, मृदङ्ग, उत्तम दुन्दुभि, और वेणु की ध्वनि के साथ अब आप उठिए। आपका सुप्रभात हो।”

इति श्रीकुशाग्रकविविरचिते श्रीसूर्यसुप्रभाते दशश्लोकात्मकं प्रथमं प्रभातम्।

2 thought on “Sūrya Suprabhātam”

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Related Post