रूपं ते रतिनाथबाणनिहता ज्योतिर्विदो गोचरं
सौन्दर्यं कवयश्च लाञ्छनमहो पश्यन्ति दोषेक्षणाः।
वीक्षन्ते च खगोलशास्त्रनिपुणाः शोधस्थलं त्वद्वपुः
शम्भोर्मस्तकभूषणं सितरुचे मत्वा भजे त्वामहम्॥१
कामदेव के बाणों से आहत हुए जन आपके रूप को, ज्योतिषी आपके गोचर को, कविगण सौंदर्य को, दूषित नयनों वाले मनुष्य लांछन को, और खगोलशास्त्री आपके तल पर शोध का स्थान देखते हैं। किंतु हे श्वेत किरणों वाले चन्द्रमा, मैं आपको शिव के मस्तक का आभूषण समझकर भजता हूँ।
मानिनीविलसिताननोपमं
कामिनीविरहतापवर्धनम्।
दैनदैन्यदलनाय शीतलं
शम्भुशेखरमुपास्महे महः॥२