पितृपक्षे स्वपूर्वजवन्दना-
पितामहः – प्रो॰ (डॉ॰) रामराजप्रसादः, PhD (London)
पूर्वं जातो मगधभुवने शारदानुग्रहेण
प्रज्ञा-मेधा-विनय-धनिको भौतिकीज्ञानविज्ञः।
सौम्यो धीरः प्रखरमतिमान् छात्रवृन्दाभिवन्द्यः,
आध्यानस्थो जयति नितरां रामराजप्रसादः॥१
पूर्व काल में मगध की धरती पर जन्मे, देवी सरस्वती के अनुग्रह से प्रज्ञा, मेधा, और विनय के धनी, भौतिकी (physics) विज्ञान के ज्ञाता, सौम्य, धैर्यवान्, प्रखर बुद्धि से सम्पन्न, और अपने छात्रों के प्रिय, डॉ॰ रामराज प्रसाद हमारी स्मृति में अवस्थित होकर सदैव सुशोभित होते हैं।
पितामही – स्व॰ पुष्पाप्रसादवर्या, प्राचार्या।
कन्याविद्यालयपरिसरे नैकसम्मानधन्या
या प्राचार्याऽभवदिह पुरा सर्वशिष्यार्हणीया।
बाधाव्यूहं पथि हतवती जीवनस्यैव नित्यं
तस्या मूर्तिर्भवतु हृदये पुष्पिता चास्मदीये॥२
जो एक समय कन्या विद्यालय के परिसर में अनेक सम्मानों से धन्य होकर सभी शिष्यों की आदरणीय आचार्या के पद पर नियुक्त हुईं और अपने जीवन के पथ पर नित्य बाधाओं के समूह को परास्त करती गईं, उनकी मूर्ति हमारे हृदय में “पुष्पित” हो।
मातामहः – कैप्टन अरुणकुमारसिन्हा, Army Corps of Engineers
औदार्येणान्वितचरितवान् सत्त्ववान् शेमुषीमान्
वात्सल्यादिप्रथितगुणवान् यान्त्रिकीक्षेत्रधीमान्।
सेनारक्षो बहुसुकृतवान् दीर्घवंशावलीवान्
सिंहोपाख्यः सततमरुणो राजतां चित्तलोके॥३
उदारता से भरे चरित, तेज, विवेक, और वात्सल्य आदि विख्यात गुणों से सम्पन्न, अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में बुद्धि लगाने वाले, सैनिक, अनेक सत्कर्मों के धनी, परिपूर्ण परिवार वाले, “सिंह” (“सिन्हा”) के उपनाम से विभूषित कैप्टन अरुण कुमार हमारे चित्त-लोक में जगमगाते रहें।
श्रद्धया यदिह दीयते सदाऽ-
श्रद्धया पितृगणाय न क्वचित्।
तत्स्वधायुतमलिप्तकल्मषं
श्राद्धमेव विदुषा निगद्यते॥४