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लोकोत्तरवार्ताः

कवि-शुक-संवादः

कस्त्वं? व्याससुतोऽस्मि सर्वविदितो गीस्ते कथं? मञ्जुला
तुण्डं कीदृगहो? यथा गणपतेर् वक्रं भृशं पिङ्गलम्।
आहारो? वनिताधरोपमफलं धाम क्व? वेदान्वये,
इत्थं निर्वचनीकृताः सुकवयः कीरेण मेधाविना॥१

तुम कौन हो? मैं तो जगद्विख्यात व्यास का पुत्र हूँ।
तुम्हारी वाणी कैसी है? मंजुला।
तुम्हारा तुण्ड (मुख) कैसा है? जैसा गणपति का वक्र और पिंग-वर्ण है।
तुम्हारा आहार क्या? वही जो वनिता के अधरों की उपमा वाला फल (दाडिम) है।
तुम्हारा निवास कहाँ है? वेद की वंश-परम्पराओं (शाखाओं) में।
इस प्रकार अच्छे-अच्छे कवि-गण एक मेधावी शुक के द्वारा निरुत्तर कर दिए गए।

कवि-शुनि-संवादः

कस्त्वं? धर्मसुहृत् स्वकर्म तव किं? भक्तिः सदा स्वामिनः
का माता तव? दूतिका सुरपतेर् वेदश्रुता वेगिनी।
कस्मात् ते सुयशः? पुराऽहमभवं सर्पेष्टिबाधाकरः,
इत्थं निर्वचनीकृताः सुकवयः श्वानेन वै धीमता॥२

प्र॰ तुम कौन हो?
उ० मैं धर्म का मित्र हूँ।

प्र॰ तुम्हारा स्वकर्म क्या है?
उ० सदा स्वामी की भक्ति करना।

प्र० तुम्हारी माता कौन है?
उ० वही जो देवताओं की दूत और गतिशील (सरमा) वेदों में प्रसिद्ध है।

प्र० तुम्हारे यश का कारण क्या है?
उ॰ प्राचीन काल में मैंने ही सर्प यज्ञ को रोका था।

इस प्रकार बड़े बड़े कवि भी एक बुद्धिमान श्वान के द्वारा निरुत्तर कर दिए गए।

कवि-मेष-संवादः

कस्त्वं भूमिसुतस्य वाहनमहं वक्त्रं कथं दक्षवत्
किं नाम त्रिदशेश्वरस्य हि यदाहारो विधेः सोदरः ।
किं कार्यं तव राष्ट्रधातृभरणं कुत्रोद्भवोऽहं त्वजः,
इत्थं निर्वचनीकृताः सुकवयो मेषेण चैकाकिना॥३

कवि – तुम कौन हो?
मेष – मैं भूमि-पुत्र मंगल का वाहन हूँ।
कवि – तुम्हारा मुख कैसा है?
मेष – प्रजापति दक्ष जैसा।
कवि – तुम्हारा नाम क्या है?
मेष – वही जो देवराज इन्द्र का भी है (मेष)।
कवि – तुम्हारा आहार क्या है?
मेष – वही जो ब्रह्मा का सहोदर है (कुश/दर्भ घास)।
कवि – तुम्हारा काम क्या है?
मेष – तेरे राष्ट्रपिता का पोषण करना।
कवि – तुम्हारा जन्म कहाँ हुआ था?
मेष – मैं तो अज (अजन्मा) हूँ।

इस प्रकार अच्छे-अच्छे कवि एक अकेले मेष के द्वारा निरुत्तर कर दिए गए।

धेनु-मार्जारी-संवादः

का त्वं? गोधनतस्करादवितुमायातास्म्यहं मातृके
लघ्वी त्वं, क्षमता न ते, लगुडवान् गोपोऽपि यत्राक्षमः।
चिन्ता माऽस्तु सुविश्रुता मृगपतेर्मातृष्वसाऽहं शुभे,
इत्थं शौर्यसमन्विता बलवती मार्जारवाणी जयेत्॥४

गाय – अरे तुम कौन हो?
बिल्ली – हे माता, मैं गो-तस्करों से तुम्हारी रक्षा करने आई हूँ।
गाय – अरे, तुम तो बहुत छोटी हो। और तुममें क्षमता भी नहीं है, जब दण्डधारी गोपालक भी (रक्षा करने में) असमर्थ हैं।
बिल्ली- हे शुभे, आप चिन्ता न करें। यह तो प्रसिद्ध है कि मैं सिंह की मौसी हूँ।

इस प्रकार बिल्ली की शौर्य से ओत-प्रोत और बलवती वाणी की जय हो।

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