To the Rama-Deniers



To a Tamil Nadu INC MP, who said, “I’m from Tamil Nadu, I don’t know Rama. You ask anybody in Tamil Nadu. We don’t see any Rama Temple.”

“न जानामि रामं न जानामि सीतां
न वा लक्ष्मणं वायुपुत्रं कदाचित्।
न वाल्मीकिमेनं न कम्बं कवीशं
परं रावणं द्राविडेशं भजामि॥”१

“मैं न राम को जानती हूँ, न सीता को। मैं न लक्ष्मण को जानती हूँ, न वायुपुत्र हनुमान को। न इन वाल्मीकि को और न कविराज कम्बन को जानती हूँ । किन्तु मैं द्रविडों के राजा रावण को प्रणाम करती हूँ।

“भवेद् भाग्यहीनो भवेन्नामहीनो
गुणैर्वा विहीनो दरिद्रातिदीनः।
समारभ्य गर्भात् समासाद्य मृत्युं
भवेद् भारते नो जनो रामहीनः॥२

“चाहे कोई भाग्यहीन हो या नाम-हीन हो, अथवा गुण-हीन, दरिद्र और दीन हो किन्तु गर्भ से आरम्भ कर मृत्यु-पर्यन्त भारत में कोई भी मनुष्य राम से हीन नहीं है।”

स रामेश्वरोऽस्ति स्थितः सेतुबन्धे
स साकेतदेशो विदेहस्तथैव।
वनं दण्डकं राजते चारुपम्पा
निमील्याक्षियुग्मं न कुत्रापि किञ्चित्॥३

“सेतु-बन्ध पर स्थित रामेश्वर, अयोध्या, विदेह, दण्डकारण्य और सुन्दर पम्पा-नगरी – आँख मूँद लेने पर तो कहीं भी इनमें से कुछ भी नहीं है।”

प्रमाणं न किञ्चिच्चरित्रस्य येषा-
मुपस्थापितं यैः प्रजातन्त्रमध्ये।
प्रमाणे हि सीतापतेर्याचिते तैर्
भवेदन्तिमः श्वासवायुः प्रमाणम्॥४

“जिन्होंने लोक-तन्त्र में अपने चरित्र का कुछ भी प्रमाण नहीं दिया, उनके द्वारा सीतापति राम का प्रमाण माँगने पर उनकी अन्तिम साँस ही प्रमाण बन जाए।”

इमं दारुणं पातकस्यैव भारं
वहन्तोऽप्यसन्तो हरेर्वैरभावात्।
जपन्तो दिवारात्रमानन्दधाम
प्रियं रामनाम प्रयायुः शिवत्वम्॥५

“इस दारुण पाप का भार ढोने वाले दुर्जन लोग श्रीहरि से वैर भाव के कारण दिन-रात उनके आनन्द-दायी प्रिय राम-नाम को जपते हुए कल्याण को प्राप्त करें।”

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