Vijayārātrikam



विजयारात्रिकम्

(ॐ जय जगदीश हरे इत्यस्य भजनगीतस्य भावानुवादः)

श्रितजनसङ्कटभञ्जन, जनरञ्जन हे
सपदि चराचरनाथ जय जगदीश हरे॥१

भवभयशोकविनाशन, स्मितशासन हे
प्रथितनिजार्चनपुण्य जय जगदीश हरे॥२

जननि जनक शरणालय, करुणालय हे।
निर्बलजनबलधाम जय जगदीश हरे॥३

परमपुरुष परमेश्वर, हृदयेश्वर हे।
प्रणव परात्पर पूत जय जगदीश हरे॥४

विमलकृपाजलसागर, सुगुणाकर हे
भक्तमनोगतदेव जय जगदीश हरे॥५

हृदयस्पन्दविधायक, सुरनायक हे
इन्द्रियविषयातीत जय जगदीश हरे॥६

दीनजनाश्रयदायक, वरदायक हे।
करधृतपतितनृलोक जय जगदीश हरे॥७

मनसिजदोषनिषूदन, मधुसूदन हे।
सज्जनसङ्गनिवास जय जगदीश हरे॥८

अधिगतसकलसमर्पण-हवितर्पण हे।
मम सर्वस्वनिधान जय जगदीश हरे॥९

कुशमुखकविनुत सुन्दर, धरणीधर हे।
चरणशरणमादाय जय जगदीश हरे॥१०

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